डॉ. जे.एस. सामरा, पूर्व उप महानिदेशक, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, भारतीय राष्ट्रीय बारानी क्षेत्र प्राधिकरण, नई दिल्ली ने भाकृअनुप-भामृजसंसं, देहरादून के निदेशक डॉ. एम. मधु और संस्थान के वैज्ञानिकों साथ विभिन्न शोध प्रस्तावों पर बातचीत की और चर्चा की। डॉ. मधु ने उन्हें संस्थान की हालिया शोध गतिविधियों और उपलब्धियों से अवगत कराया। डॉ. समरा वर्तमान में संस्थान के क्यूआरटी के अध्यक्ष के रूप में योगदान दे रहे हैं, जो 5 वर्षों में एक बार होता है।
डॉ. सामरा ने भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून में आयोजित चार महीने के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के 126वें बैच को 'भारत के विभिन्न सश्य-पारिस्थितिक क्षेत्रों हेतु संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियां' पर व्याख्यान दिया। उन्होंने सहभागी स्वरुप के तहत प्राकृतिक संसाधन संरक्षण में किसानों की भूमिका के बारे में चर्चा की। उन्होंने उत्तर-पूर्व क्षेत्र में स्थानांतरित खेती और क्षेत्र की तटस्थता और टिकाऊ उत्पादन प्रणाली की दिशा में इसके समाधान के बारे में बताया। उन्होंने केरल में पादशेखरम प्रणाली और जलवायु परिवर्तन से प्रेरित मौसम की अनिश्चितताओं के लिए उपयुक्त अनुकूलन रणनीतियों के बारे में भी चर्चा की।
डॉ. सामरा ने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला और अधिकारी प्रशिक्षुओं को क्षेत्र विशिष्ट प्रौद्योगिकियों पर काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने संस्थान की प्रगति और विशेषकर मानव संसाधन विकास एवं सामाजिक विज्ञान विभाग की सराहना की.
डॉ. चरण सिंह, विभागाध्यक्ष, मानव संसाधन विकास एवं सामाजिक विज्ञान विभाग ने औपचारिक रूप से डॉ सामरा का स्वागत किया और प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान बैच में 5 राज्यों के मृदा संरक्षण अधिकारी भाग ले रहे हैं जिनमें महिलाएं अधिक हैं उनके अनुसार इस प्रशिक्षण के माध्यम से अब तक विभिन्न राज्यों के कृषि विभागों के लगभग 3500 अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
डॉ. एम मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख (पीएमई और केएम यूनिट) ने डॉ. समरा को ओएनजीसी से फंड का लाभ उठाते हुए सौर ऊर्जा की उन्नति के लिए एक सहयोगी परियोजना की क्षमता से अवगत कराया, जिसमें उन्होंने गहरी रुचि दिखाई। डॉ. सामरा ने ग्रीन क्रेडिट और कार्बन प्रबंधन पर महानिदेशक, आईसीएफआरई और आईसीएफआरई और एफआरआई के अन्य अधिकारियों के साथ चर्चा की। अंत में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. लेख चंद ने धन्यवाद ज्ञापित किया।