इस कार्यक्रम में सात राज्यों—चंडीगढ़, नई दिल्ली, हरियाणा, मेघालय, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और नागालैंड से 24 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इनमें राज्य सरकारों, आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और शोध विद्वानों के प्रतिनिधि शामिल थे। प्रशिक्षण कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भूमि और जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य पुनर्स्थापन, जल संरक्षण, तथा कृषि वानिकी (एग्रोफोरेस्ट्री) में नवीनतम तकनीकों को बढ़ावा देना था। इस प्रशिक्षण के अंतर्गत संरक्षण संरचनाओं के डिज़ाइन, सूक्ष्म सिंचाई, जल संचयन, कृषि वानिकी और संरक्षण बागवानी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
प्रतिभागियों को सेलाकुई स्थित अनुसंधान फार्म में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया, जहाँ उन्होंने मृदा एवं जल संरक्षण संरचनाओं और विक्षीण भूमि के पुनर्स्थापन हेतु कृषि वानिकी मॉडल्स का अवलोकन किया। इसके अतिरिक्त, सहस्त्रधारा में पुनर्वासित खनन स्थलों और कालिमाटी में जल संचयन परियोजनाओं का दौरा भी किया गया, जिससे प्रतिभागियों को प्रशिक्षण में सिखाई गई अवधारणाओं के वास्तविक अनुप्रयोगों को समझने का अवसर मिला। इंटरएक्टिव चर्चा, व्यावहारिक प्रशिक्षण और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के माध्यम से, इस कार्यक्रम ने प्रतिभागियों को स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं को अपने-अपने राज्यों में लागू करने हेतु व्यावहारिक ज्ञान और नवीन रणनीतियों से सशक्त बनाया।
कार्यक्रम का नेतृत्व आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून के जल विज्ञान एवं अभियांत्रिकी प्रभाग के प्रमुख डॉ. आर. के. सिंह ने किया, जिन्होंने कोर्स डायरेक्टर की भूमिका निभाई। संस्थान के निदेशक डॉ. एम. मधु के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण कार्यक्रम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया कि प्रतिभागियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त हो सके। कार्यक्रम के दौरान, डॉ. मधु ने विक्षीण और सीमांत भूमि की उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया। उन्होंने मृदा को राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए इसके संरक्षण की महत्ता पर ज़ोर दिया और आगाह किया कि यदि मृदा नष्ट हो गई, तो कुछ भी शेष नहीं बचेगा।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में कोर्स समन्वयक डॉ. श्रीधर पात्र (प्रधान वैज्ञानिक, जल विज्ञान एवं अभियांत्रिकी) और डॉ. दीपक सिंह (वैज्ञानिक, जल विज्ञान एवं अभियांत्रिकी) तथा तकनीकी समन्वयक श्री एच. एस. भाटिया और अमित कुमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रशिक्षण के दौरान विषय-विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिए गए, जिनमें डॉ. एम. मधु, डॉ. आर. के. सिंह, डॉ. अम्बरीश कुमार, डॉ. एम. मुरुगनंदम, डॉ. ए. सी. राठौर, डॉ. राजेश कौशल, डॉ. बांके बिहारी, डॉ. तृषा रॉय और डॉ. दीपक सिंह शामिल थे। उन्होंने भूमि एवं जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, सतत मृदा स्वास्थ्य, जल संचयन संरचनाओं की डिज़ाइन, जल हानि की रोकथाम, आधुनिक सिंचाई तकनीकें और जलग्रहण प्रबंधन में सामुदायिक सहभागिता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम का समापन समापन सत्र (वैलेडिक्टरी सेशन) के साथ हुआ, जहाँ प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए और कार्यक्रम द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान व प्रशिक्षण की सराहना की। उन्होंने इस कार्यक्रम को कृषि और पर्यावरण संरक्षण की स्थायी पद्धतियों को बढ़ावा देने में अत्यंत प्रभावी बताया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून की भूमि संरक्षण तकनीकों को उन्नत करने और विविध पारिस्थितिक तंत्रों में कृषि की पुनर्स्थापन क्षमता को सुदृढ़ करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।