भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून ने संस्थान की जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) के तहत 16 से 22 अगस्त, 2024 तक पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया । इस सप्ताह भर चलने वाले कार्यक्रम के तहत, 16 अगस्त, 2024 को देहरादून के कालसी ब्लॉक के पाटा गांव में पार्थेनियम जागरूकता दिवस मनाया गया, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और स्कूल जाने वाले बच्चों सहित कुल 60 प्रतिभागियों ने भाग लिया। ये गांव समुद्र तल से 1600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। इस कार्यक्रम में, प्रतिभागियों को विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन किया गया, जैसे पार्थेनियम पौधों की पहचान, पार्थेनियम पौधों के उन्मूलन के लिए सुरक्षा उपाय, जैसे मास्क, हाथ के दस्ताने, सैनिटाइज़र, आदि, जैविक नियंत्रण के उपाय, जैसे मैक्सिकन बीटल (ज़ीगोग्रामा बाइकोलोराटा ), पार्थेनियम खाद आदि की तैयारी। कार्यक्रम की शुरुआत पार्थेनियम जागरूकता कार्यक्रम के आयोजन के महत्व पर कार्यक्रम समन्वयक, डॉ. अबिमन्यु झाझड़िया, वैज्ञानिक, वरिष्ठ स्केल (कृषि अर्थशास्त्र) द्वारा ब्रीफिंग के साथ की गई। इसी क्रम में, वरिष्ठ वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) डॉ. रमन जीत सिंह ने बताया कि पार्थेनियम खरपतवार हमारी फसल भूमि, मनुष्यों, जानवरों और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित कर रहा है। उन्होंने पार्थेनियम खरपतवार के लिए प्रभावी भौतिक, जैविक और रासायनिक प्रबंधन रणनीतियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे पार्थेनियम मनुष्यों और जानवरों में कई बीमारियों का कारण बनता है, साथ ही इन मुद्दों से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए ? उन्होंने यह भी बताया कि फूल आने से पहले पार्थेनियम खरपतवार बायोमास का उपयोग पोषक तत्वों से भरपूर खाद बनाने के लिए कैसे किया जा सकता है। उन्होंने पारिस्थितिक रूप से खरपतवार का प्रबंधन करने के लिए पार्थेनियम खरपतवार के प्राकृतिक प्रतिस्पर्धियों/शत्रुओं की पहचान करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की। उन्होंने अपने अच्छे शब्दों से उपस्थित लोगों को इस बारे में भी जागरूक किया कि कैसे पार्थेनियम का उपयोग कई उद्देश्यों के लिए सुरक्षित रूप से किया जा सकता है, खासकर मिट्टी और जल संरक्षण अनुसंधान में। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि कैसे पार्थेनियम खरपतवार का उपयोग जैविक और प्राकृतिक खेती में हरी खाद, सजीव गीली घास, खाद के रूप में किया जा सकता है। प्रतिभागियों विशेषकर बच्चों ने भी विशेषज्ञों के साथ अपने विचार और प्रश्न साझा किये। ग्रामीण श्री भगत सिंह, राजेंद्र सिंह, जवाहर सिंह, जसवीर सिंह आदि ने वैज्ञानिकों को बताया कि यह घास निर्माण कार्य के लिए मैदानी इलाकों से लाई गई रेत के माध्यम से उनके गांव में आई है। डॉ. अबिमन्यु झाझड़िया ने चर्चा के अंत में सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया । उसके बाद, सभी सुरक्षा सावधानियों के साथ, सभी प्रतिभागियों ने गांव के आसपास उग रहे पार्थेनियम पौधों को भौतिक रूप से नष्ट कर दिया। इस अवसर पर मृदा एवं जल संरक्षण हेतु किसानों को संकर नेपियर की जड़-कटिंग भी वितरित की गई। पूरा कार्यक्रम टीएसपी समन्वयक (देहरादून) डॉ. एम. मुरुगानंदम, डॉ. ए.के. सिंह, टीएसपी और एससीएसपी समन्वयक (संस्थान), और संस्थान के निदेशक डॉ. एम. मधु के सक्रिय मार्गदर्शन में आयोजित किया गया।