भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून में दिनांक22 जुलाई, 2024 को "हिमालय में जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक एवं जैव विविधता संबंधी चिंताओं" पर एक विशेष संगोष्ठी आयोजित की गई। यह संगोष्ठी संस्थान अनुसंधान समिति (IRC-2024) की वार्षिक बैठक का हिस्सा थी, जो 18-23 जुलाई 2024 तक आयोजित की गई थी।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, उत्तराखंड के पूर्व कुलपति, डॉ. एस पी सिंह ने कार्बन न्याय की अवधारणा पर चर्चा की। उन्होंने किसानों और स्थानीय समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला, जो जिम्मेदार वन कटाई और सीमित संसाधन उपभोग जैसे सतत प्रथाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। डॉ. सिंह ने बताया कि इन प्रयासों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और संबंधित समुदायों को इसके बारे में सूचित भी नहीं किया जाता। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की सांस्कृतिक रूप से निहित कम उपभोग और संरक्षण की प्रथाएँ जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण हैं और इन्हें वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
डॉ. सिंह ने वैज्ञानिकों से समाज में वैज्ञानिक वातावरण बनाने, वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने और अवैज्ञानिक विश्वासों और जीवनशैलियों को कम करने का आग्रह किया। संगोष्ठी में प्री-मानसून सूखा, मानसून संबंधी विशेषताएं, मानसून के सूखे और संबंधित नमी संरक्षण और कृषि प्रथाओं सहित विभिन्न पहलुओं का भी अन्वेषण किया गया। बढ़ती कृषि परित्याग की समस्या को उजागर किया गया, जिसमें आर्थिक वृद्धि, सकल घरेलु उत्पाद और कृषि उत्पादन के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया ताकि वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
डॉ. एम. मधु, निदेशक, भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून ने जलवायु-स्मार्ट गांवों के महत्व और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर जोर दिया।
डॉ. एम. मुरुगनंदम, प्रभागाध्यक्ष, पी.एम.ई. एवं ज्ञान प्रबंधन इकाई और संगोष्ठी के समन्वयक ने बताया कि इस कार्यक्रम ने हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और जलवायु परिवर्तन, मानसून, वन संसाधन, चराई, कृषि और आर्थिक वृद्धि के बीच आपसी संबंधों की व्यापक समझ प्रदान की।
पांच दिवसीय संस्थान अनुसन्धान समिति बैठकों के दौरान, संस्थान के आठ क्षेत्रीय केंद्रों और देहरादून स्थित मुख्यालय के लगभग 80 वैज्ञानिकों ने 65 से अधिक चल रही बहु-विषयक और सहयोगात्मक परियोजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने 15 नई अनुसंधान प्रस्तावों और भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान की अनुसूचित जाति उपयोजना एवं जनजातीय उप योजनों की प्रगति की भी समीक्षा की। बाहरी सदस्यों के एक पैनल ने परियोजनाओं की प्रगति का मूल्यांकन किया और चर्चाएँ कीं। जलवायु परिवर्तन पर एक विशेष संगोष्ठी और संभावित सहयोग की तलाश में C-DAC के साथ एक सलाहकार चर्चा भी आयोजित की गई। कार्यक्रम को हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया और संस्थान अनुसन्धान समिति-2024 के सदस्य-सचिव डॉ. मुरुगनंदम के साथ इं. एस.एस. श्रीमाली, डॉ. रमा पाल, डॉ. सादिकुल इस्लाम, वरिष्ठ वैज्ञानिकों, इं. अमित चौहान, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी और डॉ. प्रमोद लवाटे, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी, पी.एम.ई. एवं ज्ञान प्रबंधन इकाई इकाई, भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून द्वारा समन्वित किया गया।