भाकृअनुप--भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान, देहरादून द्वारा दिनांक अक्टूबर 29, 2024 को उत्तराखंड में सिंचित और वर्षा-आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के आधार बीजों के वितरण की सुविधा प्रदान की। यह पहल भाकृअनुप की कृषक प्रथम परियोजना के अंतर्गत देहरादून के रायपुर ब्लॉक में आयोजित की गई।
डॉ. बांके बिहारी, प्रमुख वैज्ञानिक और परियोजना प्रभारी ने किसानों को इन गेहूं की किस्मों की आनुवंशिक क्षमता, उच्च उपज, और क्षेत्रीय अनुकूलता के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इन किस्मों से मैदानी क्षेत्रों में 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (Q/ha) और देहरादून क्षेत्र में 35-45 q/ha तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जहां मृदा की गुणवत्ता और खेती की चुनौतियाँ उपज को प्रभावित करती हैं। फिर भी, यह उपज परंपरागत या स्थानीय किस्मों की 15-18 q/ha उपज से काफी अधिक है।
डॉ. एम. मुरुगनंदम, प्रमुख वैज्ञानिक और प्रमुख (PME और KM इकाई), ने टिकाऊ कृषि के लिए गुणवत्तापूर्ण इनपुट और बीजों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि धनतेरस, जो समृद्धि का प्रतीक है, के अवसर पर बीजों का वितरण किसानों के लिए सौभाग्य लाएगा और किसान समाज की समृद्धि में योगदान देंगे। उन्होंने बताया कि इस पहल के माध्यम से किसानों के खेतों को बीज उत्पादन केंद्र और प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, जिससे समुदाय और संस्थान दोनों को लाभ मिलेगा। किसानों से आग्रह किया गया कि वे अधिकतम उत्पादन के लिए समय पर बीजों की बुवाई करें।
बीज वितरण फार्मिंग समुदायों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत किया गया। इस अवसर पर दो गेहूं की किस्मों सिंचित क्षेत्रों के लिए उन्नत-PBW 343 तथा वर्षा-आधारित क्षेत्रों के लिए VL 967 वितरण किया गया ।
बीज वितरण उत्तराखंड सीड्स एंड तराई डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UKS&TDC), देहरादून के साथ बाय-बैक व्यवस्था के तहत किया गया। प्रत्येक किसान को 20-40 किलोग्राम बीज दिए गए, और कुल 21 क्विंटल बीज 90 किसानों में वितरित किए गए। इस मॉडल के तहत, किसानों को प्राप्त बीजों की दोगुनी मात्रा बाजार दर पर वापस करनी होगी, जिसे UKS&TDC द्वारा प्रमाणित बीज के रूप में संसाधित किया जाएगा, जबकि शेष बीजों का उपयोग किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं।
ये नई किस्में क्षेत्र में पहली बार पेश की गई हैं और 50 q/ha तक की बेहतर उपज प्रदान करती हैं। इनमें 15 से 25 नवंबर तक की विस्तारित बुवाई अवधि भी है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता में कमी आएगी और समुदाय में पानी के संसाधनों पर प्रतिस्पर्धा कम होगी।
पिछले तीन वर्षों में, इसी परियोजना के तहत चार अन्य गेहूं की किस्में—DBW 222, DBW 303, DBW 187, और VL 953—किसानों को दी गई थीं। इन किस्मों को किसानों ने सराहा और उन्होंने उत्कृष्ट उपज प्राप्त की। ये बीज स्व-प्रचारित हो गए हैं और किसानों ने उन्हें लगातार पुन: बुवाई में सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
किसानों ने वितरित बीजों के प्रदर्शन की सराहना की और बताया कि वे इन बीजों का पुन: उपयोग करके टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे रहे हैं और उत्पादकता में सुधार कर रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान कृषक उत्पादक संगठन, कोटिमचक से श्री कुशल पाल सिंह और संस्थान के अन्य परियोजना कर्मी भी उपस्थित रहे।